ठीक 54 साल पहले देव आनंद ने ये न किया होता तो न तो ऐसा ‘मोगैंबो’ होता और न ही ऐसा ‘अशरफ अली’


बॉलीवुड का इतिहास अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है. इसमें बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिनके बारे में अगर गौर करके देखा जाए तो पता चलता है कि अरे हां, अगर ऐसा न होता तो वैसा कैसे होता. अगर आपको मतलब नहीं समझ आया, तो हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं, जिसके बाद आपको इस बात का मतलब ठीक से समझ आ जाएगा.

ये कहानी आज से ठीक 54 साल पहले की है, जब देव आनंद की फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ रिलीज हुई थी. इसी फिल्म के साथ बॉलीवुड में एक नया चेहरा भी लॉन्च हुआ था. जो आगे चलकर ऐसा विलेन बना जैसा कोई और कभी बन ही न पाया. हम बात कर रहे हैं हिंदी फिल्मों के डरावने विलेन ‘मोगैंबो’ की. यानी अमरीश पुरी की.

फिल्म से जुड़ा किस्सा
28 जनवरी 1970 को देव आनंद की फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ रिलीज हुई थी. इस फिल्म की खास बात ये थी कि इस फिल्म के डायरेक्टर, एक्टर और राइटर तीनों का काम देव आनंद ने ही किया था. इस फिल्म में अमरीश पुरी के भाई मदन पुरी भी काम कर रहे थे. IMDB के मुताबिक, फिल्म के दौरान ही देव आनंद और मदन पुरी की दोस्ती में दरार पड़ गई थी. वो इसलिए, क्योंकि मदन पुरी नन्हा फरिश्ता नाम की एक दूसरी फिल्म में भी काम करना चाह रहे थे. उन्होंने देव से 5 दिनों की छुट्टी मांगी, ताकि वो जाकर फिल्म साइन कर सकें. लेकिन देव आनंद ने उन्हें मना कर दिया और यही वजह थी कि दोनों के बीच खटास पैदा हो गई.

क्या है वो कहानी जो बनाती है देव आनंद की फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ को खास
इस फिल्म के गाने अच्छे थे. फिल्म की कहानी भी अच्छी थी. फिल्म भी अच्छी फिल्मों में शुमार है. लेकिन सिर्फ यही खास बातें नहीं हैं, जो फिल्म को खास बनाती हैं. फिल्म को खास बनाने वाली चीज थी इस फिल्म में अमरीश पुरी का होना. जी हां ये वही फिल्म हैं जिसमें पहली बार अमरीश पुरी दिखे थे. इस बात का शुक्रगुजार हिंदी सिनेमा और इसके दर्शक हमेशा रहने वाले हैं कि देव आनंद ही वो पहले शख्स हैं जिन्होंने अमरीश पुरी को फिल्मों में ब्रेक दिया. हालांकि, इस फिल्म में अमरीश पुरी को कोई खास रोल नहीं था. वो एक छोटे से रोल में ही दिखे थे. लेकिन यहां से उनके रास्ते बॉलीवुड में खुल गए. इसके बाद, उनके पास हम पांच फिल्म आई. और फिर फिल्मों की झड़ी लग गई. जो मिस्टर इंडिया के मोगैंबो से लेकर गदर के अशरफ अली और उसके बाद तक चला. 

ये फिल्म 60 के दशक में इंडिया-चाइना वॉर पर थी. इस फिल्म में देशभक्ति और जासूसी दोनों का मिश्रण बढ़िया तरीके से दिखाया गया है. हालांकि, फिल्म तब अच्छा कलेक्शन नहीं कर पाई थी. लेकिन फिर भी ये फिल्म हर हिंदी सिनेमा फैन के लिए इसलिए खास है क्योंकि अगर ये फिल्म न बनती तो शायद जैसा मोगैंबो हमने देखा वैसा मोगैंबो हम देख ही न पाते.

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